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पशुपालक इस नस्ल की गाय से 800 लीटर दूध प्राप्त कर सकते हैं

पशुपालक इस नस्ल की गाय से 800 लीटर दूध प्राप्त कर सकते हैं

किसान भाइयों यदि आप पशुपालन करने का विचार कर रहे हो और एक बेहतरीन नस्ल की गाय की खोज कर रहे हैं, तो आपके लिए देसी नस्ल की डांगी गाय सबसे बेहतरीन विकल्प है। इस लेख में जानें डांगी गाय की पहचान और बाकी बहुत सारी महत्वपूर्ण जानकारियां। किसान भाइयों के समीप अपनी आमदनी को बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रकार के बेहतरीन पशु उपलब्ध होते हैं, जो उन्हें प्रति माह अच्छी आय करके दे सकते हैं। यदि आप पशुपालक हैं, परंतु आपका पशु आपको कुछ ज्यादा लाभ नहीं दे रहा है, तो चिंतित बिल्कुल न हों। आज हम आपको आगे इस लेख में ऐसे पशु की जानकारी देंगे, जिसके पालन से आप कुछ ही माह में धनवान बन सकते हैं। दरअसल, हम जिस पशु के विषय चर्चा कर रहे हैं, उसका नाम डांगी गाय है। बतादें कि डांगी गाय आज के दौर में बाकी पशुओं के मुकाबले में ज्यादा मुनाफा कमा कर देती है। इस वहज से भारतीय बाजार में भी इसकी सर्वाधिक मांग है। 

डांगी नस्ल की गाय कहाँ-कहाँ पाई जाती है

जानकारी के लिए बतादें, कि यह गाय देसी नस्ल की डांगी है, जो कि मुख्यतः गुजरात के डांग, महाराष्ट्र के ठाणे, नासिक, अहमदनगर एवं हरियाणा के करनाल एवं रोहतक में अधिकांश पाई जाती है। इस गाय को भिन्न-भिन्न जगहों पर विभिन्न नामों से भी जाना जाता है। हालाँकि, गुजरात में इस गाय को डांग के नाम से जाना जाता है। किसानों व पशुपालकों ने बताया है, कि यह गाय बाकी मवेशियों के मुकाबले में तीव्रता से कार्य करती है। इसके अतिरिक्त यह पशु काफी शांत स्वभाव एवं शक्तिशाली होते हैं। 

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डांगी गाय कितना दूध देने की क्षमता रखती है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इस देसी नस्ल की गाय के औसतन दूध देने की क्षमता एक ब्यांत में तकरीबन 430 लीटर तक दूध देती है। वहीं, यदि आप डांगी गाय की बेहतर ढ़ंग से देखभाल करते हैं, तो इससे आप लगभग 800 लीटर तक दूध प्राप्त कर सकते हैं। 

डांगी गाय की क्या पहचान होती है

यदि आप इस गाय की पहचान नहीं कर पाते हैं, तो घबराएं नहीं इसके लिए आपको बस कुछ बातों को ध्यान रखना होगा। डांगी गाय की ऊंचाई अनुमान 113 सेमी एवं साथ ही इस नस्ल के बैल की ऊंचाई 117 सेमी तक होती है। इनका सफेद रंग होता है साथ ही इनके शरीर पर लाल अथवा फिर काले धब्बे दिखाई देंगे। साथ ही, यदि हम इनके सींग की बात करें, तो इनके सींग छोटे मतलब कि 12 से 15 सेमी एवं नुकीले सिरे वाले मोटे आकार के होते हैं। 

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इसके अतिरिक्त डांगी गायों का माथा थोड़ा बाहर की ओर निकला होता है और इनका कूबड़ हद से काफी ज्यादा उभरा हुआ होता है। गर्दन छोटी और मोटी होती है। अगर आप डांगी गाय की त्वचा को देखेंगे तो यह बेहद ही चमकदार व मुलायम होती है। इसकी त्वचा पर काफी ज्यादा बाल होते हैं। इनके कान आकार में छोटे होते है और अंदर से यह काले रंग के होते हैं।

FMCI निदेशक राजू कपूर ने इस 2024 में ड्रोन का कृषि में उपयोग बढ़ने की संभावना जताई

FMCI निदेशक राजू कपूर ने इस 2024 में ड्रोन का कृषि में उपयोग बढ़ने की संभावना जताई

केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा किसानों की आमदनी को दोगुना करने का निरंतर प्रयास रहता है। इसी कड़ी में 2024 में उर्वरक और कृषि रसायन छिड़काव में ड्रोन के इस्तेमाल को प्रोत्साहन मिलेगा। एफएमसी इंडिया के निदेशक राजू कपूर – कृषि रसायन उद्योग ने वर्ष 2023 में सामने आई चुनौतियों का सामना करते  हुए सतर्क व सकारात्मक आशावाद के साथ 2024 में प्रवेश किया है। 2023 के दौरान कृषि क्षेत्र में जीवीए 1.8% प्रतिशत तक गिर गया। वहीं, कृषि रसायन उद्योग के अंदर प्रमुख चालक बरकरार रहे। इस वजह से इस क्षेत्र को खुद को रीबूट (रीस्टार्ट) करने की आवश्यकता है।

जीवीए से आप क्या समझते हैं ?

सकल मूल्य वर्धित (जीवीए) किसी अर्थव्यवस्था (क्षेत्र, क्षेत्र या देश) में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के समकुल मूल्य का माप है। जीवीए से यह भी पता चलता है, कि किस विशेष क्षेत्र, उद्योग अथवा क्षेत्र में कितनी पैदावार हुई है। 

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इस 2024 में फसल सुरक्षा उद्योग में वृद्धि की संभावना 

बतादें, कि वर्ष 2023 की द्वितीय छमाही में वैश्विक स्तर पर फसल सुरक्षा उद्योग पर डीस्टॉकिंग (भंडारण क्षमता को कम करना) का विशेष प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिला है। 2024 के चलते यदि मौसम सही रहा, तो भारतीय फसल सुरक्षा उद्योग में वर्ष की तीसरी/चौथी तिमाही में ही उछाल आने की संभावना है। जो कि समग्र बाजार की गतिशीलता में सामान्य हालात की वापसी का संकेत है। वही, रबी 2023 के लिए बुआई का क्षेत्रफल काफी सीमा तक क्षेत्रीय फसलों के लिए बरकरार है। परंतु, बुआई में दलहन और तिलहन के क्षेत्रफल में गिरावट उद्योग के लिए नकारात्मक है।

एफएमसी इंडिया के उद्योग एवं सार्वजनिक मामले के निदेशक राजू कपूर का कहना है, कि चीन से कृषि रसायनों की ‘डंपिंग’ में नरमी की आशा करनी चाहिए। प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर एक महत्वपूर्ण प्रगति उर्वरक एवं कृषि रसायन छिड़काव के लिए ड्रोन के उपयोग में काफी वृद्धि है। सरकार समर्थित ‘ड्रोन दीदी’ योजना की शुरुआत से इसे बड़ा प्रोत्साहन मिलने की संभावना है। उर्वरक और कृषि रसायन उद्योग के मध्य शानदार समन्वय से ड्रोन को एक सेवा अवधारणा के तौर में स्थिर करने में सहायता मिलेगी, इसकी वजह से फसल सुरक्षा और पोषण उपयोग दक्षता व प्रभावकारिता में सुधार आऐगा।

खरपतवारों व कीटनाशकों के लिए नियंत्रण योजना

श्री कपूर ने कहा “हमें गेहूं की फसलों में फालारिस जैसे खरपतवारों और गुलाबी बॉलवॉर्म जैसे कीटनाशकों से झूझने के लिए नए अणुओं के अनावरण की भी आशा करनी चाहिए। नवीन अणुओं के विनियामक अनुमोदन के लिए लगने वाले वक्त को तर्कसंगत बनाने के नियामक निकाय केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड की घोषणा से इसे बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।”

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बागवानी उत्पादन की लगातार बढ़ोतरी कवकनाशी की लगातार मांग के लिए सकारात्मक होगी। हालांकि, जेनेरिक उत्पादों को दबाव का सामना करना पड़ सकता है। परंतु, सहायक सरकारी योजनाओं के साथ उद्योग का दूरदर्शी दृष्टिकोण यह सुनिश्चित कर सकता है कि उद्योग विकास मार्ग पर लौट आए। श्री कपूर ने कहा कि 2024 में कृषि उद्योग की संभावनाएं इसके नवाचार एवं रणनीतिक कार्यों की खूबियां हैं। यह क्षेत्र सशक्त खाद्य मांग एवं टिकाऊ कृषि प्रथाओं के प्रति प्रतिबद्धता की वजह से एक साल के विस्तार के लिए तैयार है।

योगी सरकार ने गौ-आधारित प्राकृतिक खेती के लिए तैयार की योजना

योगी सरकार ने गौ-आधारित प्राकृतिक खेती के लिए तैयार की योजना

उत्तर प्रदेश राज्य में आर्गेनिक खेती (Organic farming) के प्रोत्साहन हेतु एवं गौ संरक्षण के हेतु प्रदेश सरकार द्वारा बड़ा कदम उठाया गया है। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गौ आधारित प्राकृतिक कृषि योजना बनाई है। इस योजना के अंतर्गत लगभग पौने तीन सौ करोड़ रुपए का व्यय होना है। गौ संरक्षण हेतु उत्तर प्रदेश की योगी सरकार बेहद सजग और जागरुक है। गौ-मूत्र एवं गाय के गोबर का उपयोग औषधियों एवं खेती बाड़ी के लिए हो रहा। गोवंशों के संबंध में अब बड़ी पहल उत्तर प्रदेश सरकार के स्तर से की जा रही है। प्रदेश सरकार द्वारा गोवंश आधारित प्राकृतिक कृषि को प्रोत्साहन देने की पूर्ण रणनीति तैयार करली है। इसकी वजह से किसानों का काफी फायदा होगा।

इस राज्य में होगी गौ आधारित खेती

उत्तर प्रदेश राज्य सरकार द्वारा उच्च स्तर पर गौ आधारित कृषि करने की योजना बना रही है। योजना के अंतर्गत राज्य के 49 जनपदों के 85,750 हेक्टेयर में गौ आधारित प्राकृतिक खेती की जाएगी। इस कृषि में गोवंशों से जुड़ी खादों का उपयोग किया जाएगा। रसायन मुक्त प्राकृतिक खेती द्वारा कृषि उत्पादन की गुणवत्ता अच्छी होगी। इसकी सहायता से भूमि या मृदा की उर्वरक शक्ति अच्छी होगी। साथ ही, प्राकृतिक खेती के अंतर्गत जो भी अनुदान मिलेगा। उसको भी प्रत्यक्ष रूप से कृषकों के खाते में भेजा जाएगा। जो किसान प्राकृतिक कृषि की ओर रुख करना चाहते हैं और करेंगे। उनको सरकार के माध्यम से बढ़ावा भी दिया जाएगा।
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गंगा को प्रदूषित होने से बचाने के लिए सरकार कर रही हर संभव प्रयास

उत्तर प्रदेश सरकार इस परियोजना के माध्यम से गंगा को रसायनिक प्रदूषण से बचाने की पहल कर रही है। योजना के तहत गंगा के किनारे स्थित 27 गांव शम्मिलित होंगे। इस योजना से गंगा के आसपास 5-5 किमी का इलाका कवर किया जाना है। जिससे कि गंगा को प्रदूषित होने से बचाने में सहायता मिल सके। इससे गंगा को निर्मल करने की केंद्र सरकार की योजना को भी पंख लग सकेंगे।

योगी सरकार जारी करेगी प्राकृतिक खेती पोर्टल

प्राकृतिक खेती के उत्पादन को प्रोत्साहन देने हेतु राज्य सरकारें अहम पहल की जाएगी। इसी क्रम में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी यूपी दिवस के अवसर पर प्राकृतिक खेती पोर्टल जारी करेंगे। जो परियोजना केंद्र एवं राज्य सरकार की एकमत पहल है। इसकी कुल लागत 246 करोड़ रुपये की होगी। आगामी चार वर्षों के अंतर्गत प्रति हेक्टेयर के अनुसार केंद्र और राज्य सरकार के संयुक्त प्रयास से चलने वाली इस कल्याणकारी परियोजना के अंतर्गत प्रति हेक्टेयर 28714 रुपये आगामी 4 वर्षों तक खर्च किए जाने हैं।

इस राज्य में 50-50 हेक्टेयर के 1715 क्लस्टर बनाने जा रही है सरकार

परियोजना के अंतर्गत राज्य भर में क्लस्टर स्थापित किए जाने हैं। प्रदेश के 49 जनपदों में 50-50 हेक्टेयर के 1715 क्लस्टर विकसित करने की योजना है। योजना के अंतर्गत निर्धारित किया गया है, कि किसान के पास एक हेक्टेयर से अधिक भूमि नहीं होनी चाहिए। प्रत्येक क्लस्टर में कृषकों का समूह भी जुड़ सकेगा।

इस परियोजना के तहत देशी गाय रखना अत्यंत आवश्यक है

दरअसल, सरकार की परियोजना ही गाय से संबंधित होती है। इस वजह से राज्य सरकार द्वारा निर्धारित किया गया है, कि प्रत्येक कृषि करने वाले कृषक के पास एक देसी गाय होनी अनिवार्य है। इस वजह से सड़कों पर असहाय व छुट्टा घूमने वाली गायों के संरक्षित पालन में वृध्दि हो सकेगी। गाय का गोबर गौ मूत्र, जीवामृत, बीजामृत निर्माण में काफी सहायक होगा। साथ ही, एक विशेष प्रावधान जारी किया गया है, कि जो किसान प्राकृतिक कृषि कार्य करेंगे। उनको केवल बीज ही खेत से बाहर निकालना होगा। विशेषज्ञों ने इस खेती को जीरो बजट की खेती का नाम दिया है।
इंतजार की घड़ियां हुई खत्म, जानिए किस दिन आएगी पीएम किसान की 13वीं किस्त

इंतजार की घड़ियां हुई खत्म, जानिए किस दिन आएगी पीएम किसान की 13वीं किस्त

लंबे इंतजार के बाद आखिरकार वो घड़ी आ ही गयी, जब किसानों को पीएम किसान योजना के अंतर्गत 13वीं किस्त दी जाएगी. जिसके लिए दिन भी लगभग तय हो चुका है. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों के लिए किसी मसीहा से कम नहीं हैं. किसानों के हित में उन्होंने पीएम किसान योजना को शुरू किया. जिसकी 17 किस्त पीएम ने खुद 17 अक्टूबर के दिन जारी की थी. बता दें केंद्र सरकार ने इसके लिए लगभग 16 हजार करोड़ रूपये खर्च किये थे. जिसका फायदा देश के 8 करोड़ किसानों को हुआ था. पीएम किसान यानि कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना केंद्र सरकार की योजना है. जिसके तहत किसानों को साल में 6 हजार रुपये दिए जाते हैं. 6 हजार की यह राशि तीन किस्तों में यानि की दो-दो हजार करके दी जाती है. इसका मतलब सरकार हर चौथे महीने दो हजार की किस्त जारी करती है, जो सीधा किसानों के बैंक अकाउंट में ट्रांसफर की जाती है.

पीएम किसान योजना के बारे में

यह योजना देश के उन भूमिधारक किसानों परिवारों के लिए है, जो उनकी आय में मदद करती है. इस योजना के तहत किसानों को कृषि के साथ साथ अन्य घरेलू जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलती है. इस योजना की शुरुआत खास तौर पर सीमांत किसानों के लिए की गयी थी.

इस दिन जारी हो सकती है 13वीं किस्त

किसानों को 13वीं किस्त का बड़ी ही बेसब्री से इंतज़ार है. जानकारी के मुताबिक बता दें कि, केंद्र सरकार आने वाली होली तक इस किस्त को जारी कर सकती है. किसानों को अगर इस योजना का फायदा लेना है तो इसके लिए उन्हें सबसे पहले अपना ई-केवाईसी अपडेट करवाना जरूरी होगा. वरना उन्हें इसका फायदा नहीं मिलेगा. ये भी पढ़ें: जानें पीएम किसान योजना जी 13 वीं किस्त कब तक आएगी

ऑनलाइन ऐसे करें अपना ई-केवाईसी अपडेट

ऑनलाइन ई-केवाईसी अपडेट करने के लिए किसान भाइयों को सबसे पहले पीएम किसान से सम्बंधित आधिकारिक साइट पर विजिट करना होगा. जिसके बाद उनके सामने ई-केवाईसी का विकल्प आएगा. जिसपर क्लिक करके अपना आधार कार्ड नंबर दाखिल करना होगा. अगले चरण में कैप्चा कोड और रजिस्टर मोबाइल नंबर डालना होगा. एसएमएस के जरिये ओटीपी आएगा, जिसे दर्ज करके आप अपना ई-केवाईसी अपडेट कर सकते हैं.
खरीफ सीजन में बासमती चावल की इन किस्मों की खेती से होगी अच्छी पैदावार और कमाई

खरीफ सीजन में बासमती चावल की इन किस्मों की खेती से होगी अच्छी पैदावार और कमाई

भारत भर में बासमती धान का उत्पादन किया जाता है। देश के विभिन्न राज्यों में विभिन्न किस्म का बासमती चावल उगाया जाता है। परंतु, कुछ ऐसी भी प्रजातियां हैं, जिनके उत्पादन हेतु हर प्रकार का मौसम और जलवायु उपयुक्त होता है। 

इस बार जून के पहले हफ्ते में मानसून की शुरुआत होगी। इसके उपरांत संपूर्ण भारत में किसान धान की बुवाई करने में लग जाएंगे। दरअसल, किसानों ने धान की नर्सरी को तैयार करना चालू कर दिया है। 

यदि किसान भाई बासमती धान का उत्पादन करने की योजना बना रहे हैं, तो उनके लिए यह अच्छी खबर है। क्योंकि, आगे इस लेख में हम आपको बासमती धान की सदाबहार प्रजतियों के विषय में जानकारी देने वाले हैं। 

इन किस्मों से खेती करने पर रोग लगने का खतरा भी बहुत कम रहता है। साथ ही, काफी बेहतरीन पैदावार भी मिलती है।

बासमती चावल का उत्पादन पूरे देश में किया जाता है

ऐसे तो बासमती चावल की खेती पूरे भारत में की जाती है। लेकिन, भिन्न-भिन्न राज्यों में वहां की मृदा-जलवायु हेतु अनुकूल भिन्न-भिन्न किस्म का बासमती चावल उगाया जा सकता है। 

हालाँकि, कुछ ऐसी भी प्रजातियां मौजूद हैं, जिनका उत्पादन हर प्रकार के मौसम एवं जलवायु में आसानी से किया जा सकता है। इन किस्मों के ऊपर झुलसा रोग का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। 

साथ ही, फसल की लंबाई कम होने की वजह से तेज हवा बहने पर भी यह वृक्ष नहीं गिरते हैं। अब ऐसी हालत में किसानों की कीटनाशकों पर आने वाली लागत में राहत मिलेगी एवं धान में पोष्टिकता भी बनी रहेगी। इसकी वजह से बाजार में समुचित भाव प्राप्त होगा। 

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पूसा बासमती-6 (पूसा- 1401):

पूसा बासमती-6 धान की एक सिंचित किस्म है। मतलब कि यह प्रजाति बारिश से ही अपने लिए जल की आवश्यकता को पूरा कर लेती है। यह बासमती की एक बौनी प्रजाति है। 

इसकी फसल की लंबाई परंपरागत बासमती की तुलना में बेहद कम होती है। ऐसी हालत में तीव्र हवा चलने पर भी इसकी फसल खेत में नहीं गिरती है। 

इसकी उत्पादन क्षमता 55 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है। यदि किसान भाई इसकी खेती करेंगे को उनको काफी ज्यादा उत्पादन प्राप्त हो सकेगा।

उन्नत पूसा बासमती-1 (पूसा-1460):

उन्नत पूसा बासमती-1 भी पूसा बासमती-6 की ही भाँती एक सिंचित बासमती धान की प्रजाति है। इसकी फसल 135 दिन के समयांतराल में ही पककर तैयार हो जाती है। 

इसका अर्थ यह है, कि 135 दिन के उपरांत किसान भाई इसकी कटाई कर सकते हैं। इसमें रोग प्रतिरोध क्षमता काफी ज्यादा पाई जाती है। 

अब ऐसी हालत में इसके ऊपर झुलसा रोग का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। यदि पैदावार की बात करें तो, आप एक हेक्टेयर से 50 से 55 क्विंटल धान की पैदावार कर सकते हैं। 

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पूसा बासमती-1121:

पूसा बासमती- 1121 का उत्पादन आप किसी भी धान की खेती वाले भाग में कर सकते हैं। यह बासमती की एक सुगंधित प्रजाति है। जो कि 145 दिन के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती है। 

इसके चावल का दाना पतला एवं लंबा होता है। खाने में यह बेहद स्वादिष्ट लगती है। इसकी उत्पादन क्षमता 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इसके अलावा यदि किसान भाई चाहें, तो पूसा सुगंध-2, पूसा सुगंध-3 और पूसा सुगंध-5 की भी खेती कर सकते हैं। 

इन किस्मों की खेती करने हेतु पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर का मौसम उपयुक्त है। यह किस्में तकरीबन 120 से 125 दिन के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती हैं। साथ ही, एक हेक्टेयर जमीन से 40 से 60 क्विंटल उत्पादन मिल सकता है।

इफको (IFFCO) कंपनी द्वारा निर्मित इस जैव उर्वरक से किसान फसल की गुणवत्ता व पैदावार दोनों बढ़ा सकते हैं

इफको (IFFCO) कंपनी द्वारा निर्मित इस जैव उर्वरक से किसान फसल की गुणवत्ता व पैदावार दोनों बढ़ा सकते हैं

भारत के दक्षिणी-पूर्वी समुद्री तटों में उगने वाले लाल-भूरे रंग के शैवाल भी फसल की गुणवत्ता के साथ पैदावार में बढ़ोत्तरी हेतु भी काफी सहायक साबित होते हैं। इफको (IFFCO) द्वारा इस समुद्री शैवाल के प्रयोग से जैव उर्वरक भी निर्मित किया जाता है। कृषि क्षेत्र को और ज्यादा सुविधाजनक बनाने हेतु केंद्र व राज्य सरकारें एवं वैज्ञानिक निरंतर नवीन प्रयोग करने में प्रयासरत रहते हैं। खेती-किसानी के क्षेत्र में आधुनिक तकनीकों के साथ मशीनों को भी प्रोत्साहन दिया जा रहा है। इनका उपयोग करने के लिए कृषकों को अधिक खर्च वहन ना करना पड़े। इस वजह से बहुत सारी योजनाएं भी लागू की गयी हैं और आज भी बनाई जा रही हैं। इन समस्त प्रयासों का एकमात्र लक्ष्य फसल की गुणवत्ता एवं पैदावार में बेहतरीन करना है। पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए फसलीय पैदावार अच्छी दिलाने में जैविक खाद व उर्वरक स्थायी साधन की भूमिका निभा रहे हैं। जैविक खाद तैयार करना कोई कठिन कार्य नहीं है। किसान अपनी जरूरत के हिसाब से अपने गांव में ही जैविक खाद निर्मित कर सकते हैं। परंतु, मृदा का स्वास्थ्य एवं फसल के समुचित विकास हेतु कुछ पोषक तत्वों की भी आवश्यकता पड़ती है, जिसको उर्वरकों के उपयोग से पूर्ण किया जाता है। वर्तमान में सबसे बड़ी समस्या यह है, कि रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से मृदा की शक्ति पर दुष्प्रभाव पड़ता है। इसलिए ही जैव उर्वरकों के प्रयोग को बढ़ाने और उपयोग में लाने की राय दी जाती है। समुद्री शैवाल जैव उर्वरक का अच्छा खासा स्त्रोत माना जाता है। जी हां, भारत में नैनो यूरिया (Nano Urea) एवं नैनो डीएपी (Nano DAP) को लॉन्च करने वाली कंपनी इफको ने समुद्री शैवाल के प्रयोग से बेहतरीन जैव उर्वरक (Bio Fertilizer) निर्मित किया है। जो कि फसल की गुणवत्ता एवं पैदावार को अच्छा करने में काफी सहायक माना जा रहा है।

इफको (IFFCO) 'सागरिका' को किस तरह से तैयार करता है

देश के दक्षिण-पूर्वी तटों से सटे समुद्र में उत्पन्न होने वाले लाल-भूरे रंग के शैवालों के माध्यम से इफको ने 'सागरिका' उत्पाद निर्मित किया है। इसकी सहायता से पौधों की उन्नति व विकास के साथ-साथ फसलीय उत्पादन की बढ़ोत्तरी में काफी सहायता प्राप्त होती है। इफको वेबसाइट पर दी गयी जानकारी के मुताबिक, इफको के सागरिका उत्पाद में 28% कार्बोहाइड्रेट, प्राकृतिक हार्मोन, समुद्री शैवाल, प्रोटीन सहित विटामिन जैसे कई सारे पोषक तत्व उपलब्ध हैं। 

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'सागरिका' से क्या क्या लाभ होते हैं

इफको की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, समुद्री शैवाल से निर्मित सागरिका का विशेष ध्यान फसल की गुणवत्ता में बेहतरी लाना है। इसकी सहायता से फल एवं फूल का आकार बढ़ाने, प्रतिकूल परिस्थितियों में फसल का संरक्षण, मृदा की उपजाऊ शक्ति को बनाए रखने एवं पौधों की उन्नति व विकास हेतु आंतरिक क्रियाओं को बढ़ावा देने का कार्य किया जाता है। किसान इसका जरूरत के हिसाब से फल, फूल, सब्जियों, अनाज, दलहन, तिलहन की फसलों पर छिड़काव कर सकते हैं।

सागरिका जैविक खेती हेतु काफी लाभदायक होता है

बहुत सारे किसान वर्षों से रसायनिक कृषि करते आ रहे हैं। इसलिए वह एकदम से ऑर्गेनिक खेती (Organic Farming)की दिशा में बढ़ने से घबराते हैं। क्योंकि किसानों को फसलीय उत्पादन में घटोत्तरी का काफी भय रहता है। इस प्रकार की स्थिति में इफको सागरिका किसानों के लिए काफी हद तक सहायक भूमिका निभा सकता है। यह एक रसायन रहित उर्वरक व पोषक उत्पाद है, जो कि फसल को बिना नुकसान पहुंचाए उत्पादन को बढ़ाने में कारगर साबित होता है। किसान हर प्रकार की फसल पर इफको सागरिका का दो बार छिड़काव कर सकते हैं। विशेषज्ञों की मानें तो 30 दिन के अंतर्गत सागरिका का छिड़काव करने से बेहतर नतीजे देखने को मिलते हैं। यह तकरीबन 500 से 600 रुपये प्रति लीटर के भाव पर विक्रय की जाती है। किसान एक लीटर सागरिका का पानी में मिश्रण कर एक एकड़ फसल पर छिड़काव किया जा सकता है।